तुम्हारे दिल में जो ग़म बसा है तो मैं कहाँ हूँ
ये मैं नहीं कोई दूसरा है तो मैं कहाँ हूँ
हमारी पलकों के ख़्वाब आख़िर उदास क्यूँ हैं
अगर ये तुम को ही सोचना है तो मैं कहाँ हूँ
वो मेरी तस्वीर मेरी ख़ुश्बू ख़याल मेरा
तुम्हारा कमरा सजा हुआ है तो मैं कहाँ हूँ
किसी ने देखा तो क्या कहेगा तुम ही बताओ
तुम्हारे हाथों में आईना है तो मैं कहाँ हूँ
तुम्हारी चाहत के ज़ख़्म शायद महक रहे हैं
सुना है मौसम हरा-भरा है तो मैं कहाँ हूँ
हरा जमेगा कि सुर्ख़ जोड़ा ये कारचोबी
तुम्हें ये दिल ही से पूछना है तो मैं कहाँ हूँ
ये तुम भी सोचो कि 'बद्र' आख़िर उदास क्यूँ है
चराग़ इतना बुझा बुझा है तो मैं कहाँ हूँ
ग़ज़ल
तुम्हारे दिल में जो ग़म बसा है तो मैं कहाँ हूँ
बद्र वास्ती