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तुम्हारे दर्द को सूरज कहा है | शाही शायरी
tumhaare dard ko suraj kaha hai

ग़ज़ल

तुम्हारे दर्द को सूरज कहा है

ख़ुर्शीद अहमद जामी

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तुम्हारे दर्द को सूरज कहा है
नया उस्लूब ग़ज़लों को दिया है

सहर के रास्ते में सर उठाए
अंधेरों का वही पर्बत खड़ा है

बहुत कुछ जो किताबों में नहीं था
वो चेहरों की लकीरों में पढ़ा है

कोई वहशत-ज़दा ज़ख़्मी इरादा
तबस्सुम बन के लहराता रहा है

बताओ नाम भी है कुछ तुम्हारा
मिरा साया मुझी से पूछता है

मुझे अपना समझ कर ज़िंदगी ने
ख़ुद अपने आप को धोका दिया है

दर-ओ-दीवार से हर रोज़ 'जामी'
वही बे-रंग अफ़्साना सुना है