तुम्हारा हुस्न है यकता चलो मैं मान लेता हूँ
कोई तुम सा नहीं देखा चलो मैं मान लेता हूँ
अगर मेरे लिए कहते न हरगिज़ ए'तिबार आता
वो औरों के लिए रोया चलो मैं मान लेता हूँ
मुझे मालूम है वा'दा-ख़िलाफ़ी उस की फ़ितरत है
जो कहते हो निभाएगा चलो मैं मान लेता हूँ
सुना है वो बहुत नादिम हुआ अपने रवय्ये पर
मुझे ठुकरा के पछताया चलो मैं मान लेता हूँ
जिसे मैं ने कभी चाहा था अपनी जान से बढ़ कर
वो मेरा हो नहीं पाया चलो मैं मान लेता हूँ
यूँही तो शहर में हंगामा 'साग़र' हो नहीं सकता
वो निकले होंगे बे-पर्दा चलो मैं मान लेता हूँ

ग़ज़ल
तुम्हारा हुस्न है यकता चलो मैं मान लेता हूँ
इमरान साग़र