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तुम वक़्त-ए-सहर रौज़न-ए-दीवार में देखो | शाही शायरी
tum waqt-e-sahar rauzan-e-diwar mein dekho

ग़ज़ल

तुम वक़्त-ए-सहर रौज़न-ए-दीवार में देखो

क़ैसर अब्बास

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तुम वक़्त-ए-सहर रौज़न-ए-दीवार में देखो
लाली सी कहीं सुब्ह के आसार में देखो

हर जिंस की क़ीमत है मिरे सर से ज़ियादा
रुक कर तो कभी कूचा ओ बाज़ार में देखो

थक-हार के सीखे हैं मसाफ़त के क़रीने
इक ताज़ा सफ़र साया-ए-दीवार में देखो

ये अतलस ओ किम-ख़्वाब मिरा असल नहीं हैं
मिलना हो तो मुझ को मिरे पिंदार में देखो

अब जुर्म है हम-साए का हम-साए से मिलना
ये ताज़ा ख़बर आज के अख़बार में देखो

मैं नींद में चलता हुआ खो जाऊँ न 'क़ैसर'
आहट मिरे क़दमों की शब-ए-तार में देखो