तुम उस से दूरी भी मत ख़्वाह-मख़ाह में रखना
बस एहतियात सी इक रस्म-ओ-राह में रखना
तुम अपने रंग नहाओ तुम अपनी मौज उड़ो
मगर हमारी वफ़ा भी निगाह में रखना
क़ुबूल गर न करे वो तो क्या हमें सर-ए-शाम
गुलाब महफ़िल-ए-जिल्ल-ए-इलाह में रखना
जो रास आई उसे मसनद-ए-शही तो सुनो
शिकस्ता चूड़ियाँ अब रज़्म-गाह में रखना
बड़ा अज़ाब है महमूदा-'ग़ाज़िया' हिजरत
मिरे ख़ुदा मुझे अपनी पनाह में रखना
ग़ज़ल
तुम उस से दूरी भी मत ख़्वाह-मख़ाह में रखना
महमूदा ग़ाज़िया