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तुम उस से दूरी भी मत ख़्वाह-मख़ाह में रखना | शाही शायरी
tum us se duri bhi mat KHwah-maKHwah mein rakhna

ग़ज़ल

तुम उस से दूरी भी मत ख़्वाह-मख़ाह में रखना

महमूदा ग़ाज़िया

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तुम उस से दूरी भी मत ख़्वाह-मख़ाह में रखना
बस एहतियात सी इक रस्म-ओ-राह में रखना

तुम अपने रंग नहाओ तुम अपनी मौज उड़ो
मगर हमारी वफ़ा भी निगाह में रखना

क़ुबूल गर न करे वो तो क्या हमें सर-ए-शाम
गुलाब महफ़िल-ए-जिल्ल-ए-इलाह में रखना

जो रास आई उसे मसनद-ए-शही तो सुनो
शिकस्ता चूड़ियाँ अब रज़्म-गाह में रखना

बड़ा अज़ाब है महमूदा-'ग़ाज़िया' हिजरत
मिरे ख़ुदा मुझे अपनी पनाह में रखना