EN اردو
तुम से ये कब कहा है कि अक्सर मिला करो | शाही शायरी
tum se ye kab kaha hai ki akasr mila karo

ग़ज़ल

तुम से ये कब कहा है कि अक्सर मिला करो

शकील जाफ़री

;

तुम से ये कब कहा है कि अक्सर मिला करो
मुझ से मिरे जुनूँ के बराबर मिला करो

मैं तुम से जब मिलूँ तो मुकम्मल मिला करूँ
तुम मुझ से जब मिलो तो सरासर मिला करो

नामा बराए निस्फ़ मुलाक़ात भूल जाओ
तकमील-ए-कार-ए-ख़ैर को आ कर मिला करो

मिलता नहीं वजूद के बाहर किसी से मैं
मुझ से मिरे वजूद के अंदर मिला करो

दाद-ए-जमाल-ओ-हुस्न समेटूँ बिला-हिसाब
मिलने के ब'अद मुझ से मुकर्रर मिला करो

मुझ से नहीं है ख़ास तअल्लुक़ तुम्हें तो फिर
औरों की तरह मुझ से भी हँस कर मिला करो

ये ठीक है कि सिर्फ़ तग़य्युर को है सबात
मिल कर बिछड़ने वालो बिछड़ कर मिला करो