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तुम से शिकवा भी नहीं कोई शिकायत भी नहीं | शाही शायरी
tum se shikwa bhi nahin koi shikayat bhi nahin

ग़ज़ल

तुम से शिकवा भी नहीं कोई शिकायत भी नहीं

अासिफ़ा ज़मानी

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तुम से शिकवा भी नहीं कोई शिकायत भी नहीं
और इस तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ की वज़ाहत भी नहीं

याद मीरास है यादें ही अमानत हैं मिरी
वो तो महफ़ूज़ हैं अब उन की इनायत भी नहीं

जब मिरी गर्दिश-ए-दौराँ से मुलाक़ात हुई
हँस के बोले तुझे हाजात-ए-किफ़ायत भी नहीं

तल्ख़ यादों का दफ़ीना है ये मासूम सा दिल
तल्ख़ यादों से हमें कोई शिकायत भी नहीं

'आसिफ़ा' सिर्फ़ है कहने के लिए दिल मेरा
अब मगर दिल पे मिरे मेरी हुकूमत भी नहीं