तुम साथ चले थे तो मिरे साथ चला दिन
तुम राह से बिछड़े थे कि बस डूब गया दिन
जो तुम से महक जाए इक ऐसी न मिली रात
जो तुम से चमक जाए इक ऐसा न मिला दिन
इक रंगी-ए-हालात से पथरा गईं आँखें
जिस तरह कटी रात उसी तरह कटा दिन
वो और मसाफ़त थी जिसे झेल चुके हम
ये और मसाफ़त है जिसे झेल रहा दिन
ग़ज़ल
तुम साथ चले थे तो मिरे साथ चला दिन
अहमद हमेश