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तुम सा गर राहबर नहीं होता | शाही शायरी
tum sa gar rahbar nahin hota

ग़ज़ल

तुम सा गर राहबर नहीं होता

इबरत बहराईची

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तुम सा गर राहबर नहीं होता
कोई भी राह पर नहीं होता

रास्ते भी फ़रेब देते हैं
जब कोई हम-सफ़र नहीं होता

उस की यादें जो हम-सफ़र होतीं
तो सफ़र तूल-तर नहीं होता

अपने साए से जो न हो महरूम
ऐसा कोई शजर नहीं होता

हाँ मैं उस की अगर मिलाता हाँ
दार पे मेरा सर नहीं होता

मैं निकलता हूँ जब सफ़र के लिए
घर में रख़्त-ए-सफ़र नहीं होता

लाख करता हूँ कोशिशें 'इबरत'
ग़म मगर मुख़्तसर नहीं होता