तुम ने हमारा साथ दिया तो ख़ुद को हम पा जाएँगे
वर्ना अपनी ज़ात से हमदम फिर धोका खा जाएँगे
कड़ी धूप में हम ले आए अपने कोमल गीतों को
उन के फूल से चेहरे देखें धूप में कुम्हला जाएँगे
आँखें मूँद के चलने वाले धुन के पक्के निकले तो
चलते चलते इक दिन आख़िर मंज़िल को पा जाएँगे
कौन हवाओं के पर बाँधे कौन हमारा रस्ता रोके
आग का दरिया होगा तो भी तैर के हम आ जाएँगे
दानाई के शहर के बासी पागल-पन के जंगल में
जंगल वालो आँख बचा कर आग सी भड़का जाएँगे
मन की आँख खुले तो समझो नूर का ज़ीना चढ़ना है
वर्ना तन की आँख के शीशे धूप में धुँदला जाएँगे
दर्द-हवा का पीछा करना सब के बस की बात नहीं
अपना पीछा करते करते दोस्त भी उकता जाएँगे

ग़ज़ल
तुम ने हमारा साथ दिया तो ख़ुद को हम पा जाएँगे
विश्वनाथ दर्द