तुम मुँह लगा के ग़ैरों को मग़रूर मत करो
लग चलना ऐसे देसों से दस्तूर मत करो
टस्वे बहा के हर घड़ी ज़ारी नहीं है ख़ूब
ये राज़-ए-इश्क़ है उसे मशहूर मत करो
हर-चंद दिल दुखाना किसी का बुरा है पर
रंजीदा ख़ातिरों को तो रंजूर मत करो
ऐ हमदमो जो मुझ से है मंज़ूर इख़्तिलात
जुज़ ज़िक्र-ए-यार तुम कोई मज़कूर मत करो
रौशन रखो जहान में मौला मिसाल-ए-मेहर
चंदा के मुँह से नूर को तुम दूर मत करो
ग़ज़ल
तुम मुँह लगा के ग़ैरों को मग़रूर मत करो
मह लक़ा चंदा