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तुम मुँह लगा के ग़ैरों को मग़रूर मत करो | शाही शायरी
tum munh laga ke ghairon ko maghrur mat karo

ग़ज़ल

तुम मुँह लगा के ग़ैरों को मग़रूर मत करो

मह लक़ा चंदा

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तुम मुँह लगा के ग़ैरों को मग़रूर मत करो
लग चलना ऐसे देसों से दस्तूर मत करो

टस्वे बहा के हर घड़ी ज़ारी नहीं है ख़ूब
ये राज़-ए-इश्क़ है उसे मशहूर मत करो

हर-चंद दिल दुखाना किसी का बुरा है पर
रंजीदा ख़ातिरों को तो रंजूर मत करो

ऐ हमदमो जो मुझ से है मंज़ूर इख़्तिलात
जुज़ ज़िक्र-ए-यार तुम कोई मज़कूर मत करो

रौशन रखो जहान में मौला मिसाल-ए-मेहर
चंदा के मुँह से नूर को तुम दूर मत करो