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तुम कुछ भी करो होश में आने के नहीं हम | शाही शायरी
tum kuchh bhi karo hosh mein aane ke nahin hum

ग़ज़ल

तुम कुछ भी करो होश में आने के नहीं हम

फ़रहत एहसास

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तुम कुछ भी करो होश में आने के नहीं हम
हैं इश्क़ घराने के ज़माने के नहीं हम

हम और मोहब्बत के सिवा कुछ नहीं करते
वो रूठ गया है तो मनाने के नहीं हम

दरिया है मोहब्बत तो मिले जिस्म का मैदान
इक जिस्म प्याले में समाने के नहीं हम

हम पर भी कभी अपनी हलाकत की नज़र डाल
सच जान कि जान अपनी बचाने के नहीं हम

कितना ही करे शोर यहाँ आ के ज़माना
तुझ पर से मगर ध्यान हटाने के नहीं हम

ये जिस्म फ़क़त एक तरफ़ का है मुसाफ़िर
जा कर फिर उसी जिस्म में आने के नहीं हम

पास आओ कि हम खा तो नहीं जाएँगे तुम को
बस दाँत दिखाने के हैं खाने के नहीं हम

'एहसास'-मियाँ पीर हैं मुर्शिद हैं हमारे
अब उठ के यहाँ से कहीं जाने के नहीं हम