तुम को मैं जब सलाम करता हूँ
तब फ़ुग़ाँ गाम गाम करता हूँ
ग़ुंचा-ओ-गुल की ख़स्ता-हाली का
ज़िक्र में सुब्ह-ओ-शाम करता हूँ
बे-सुतूँ काट कर खड़ा हूँ मैं
कोहकन जैसे काम करता हूँ
आतिश-ए-इश्क़ जब जलाती है
जल के मैं नोश-ए-जाम करता हूँ
शेर होता नहीं है जब 'बाबर'
उस का कुछ एहतिमाम करता हूँ
ग़ज़ल
तुम को मैं जब सलाम करता हूँ
बाबर रहमान शाह