EN اردو
तुम को अपना शुमार करते हैं | शाही शायरी
tumko apna shumar karte hain

ग़ज़ल

तुम को अपना शुमार करते हैं

मंसूर ख़ुशतर

;

तुम को अपना शुमार करते हैं
दीदा-ओ-दिल निसार करते हैं

उन का मश्क़-ए-सितम रहे जारी
जिन को हम दिल से प्यार करते हैं

हम से तो बद-गुमाँ रहे तो रहे
हम तिरा ए'तिबार करते हैं

हम बनाते हैं फूल काँटों को
आप फूलों को ख़ार करते हैं

आप को शौक़ है तो मज़हब हम
इश्क़ का इख़्तियार करते हैं

हम जुदा तुम से रह नहीं सकते
रिश्ता फिर उस्तुवार करते हैं

बख़्शी 'ख़ुशतर' को दर्द की दौलत
शुक्र-ए-पर्वरदिगार करते हैं