तुम ख़फ़ा क्या हुए हयात गई 
जान तस्कीन-ए-काएनात गई 
जब से मुरझा गई है दिल की कली 
रौनक़-ए-गुलशन-ए-हयात गई 
साक़िया सिर्फ़ अपने अपनों पर 
बस तिरी चश्म-ए-इल्तिफ़ात गई 
हाए बेचारगी-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र 
वो भी ता-हद्द-ए-मुम्किनात गई 
एक आँसू की तर्जुमानी से 
अज़मत-ए-ग़म की सारी बात गई 
दर्द-ए-दिल में हुई है जब से कमी 
क्या कहें लज़्ज़त-ए-हयात गई 
हम ही हम थे कभी निगाहों में 
अब कहाँ है वो पहली बात गई 
चैन अब भी कहाँ है दिल को 'वक़ार' 
बे-क़रारी में सारी बात गई
        ग़ज़ल
तुम ख़फ़ा क्या हुए हयात गई
वक़ार बिजनोरी

