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तुम ख़फ़ा क्या हुए हयात गई | शाही शायरी
tum KHafa kya hue hayat gai

ग़ज़ल

तुम ख़फ़ा क्या हुए हयात गई

वक़ार बिजनोरी

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तुम ख़फ़ा क्या हुए हयात गई
जान तस्कीन-ए-काएनात गई

जब से मुरझा गई है दिल की कली
रौनक़-ए-गुलशन-ए-हयात गई

साक़िया सिर्फ़ अपने अपनों पर
बस तिरी चश्म-ए-इल्तिफ़ात गई

हाए बेचारगी-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र
वो भी ता-हद्द-ए-मुम्किनात गई

एक आँसू की तर्जुमानी से
अज़मत-ए-ग़म की सारी बात गई

दर्द-ए-दिल में हुई है जब से कमी
क्या कहें लज़्ज़त-ए-हयात गई

हम ही हम थे कभी निगाहों में
अब कहाँ है वो पहली बात गई

चैन अब भी कहाँ है दिल को 'वक़ार'
बे-क़रारी में सारी बात गई