तुम हरीम-ए-नाज़ में बैठे हो बेगाने बने
जुस्तुजू में अहल-ए-दिल फिरते हैं दीवाने बने
सब को साक़ी ने नहीं बख़्शा दिल-ए-दर्द-आश्ना
जितने अहल-ए-ज़र्फ़ थे उतने ही पैमाने बने
जल्वा-ए-हुस्न और सोज़-ए-इश्क़ दोनों एक हैं
शम्अ की लौ थरथराने ही से परवाने बने
मौज-ए-तूफ़ाँ-ख़ेज़ उठ कर छीन ले साहिल की आस
नाख़ुदा के आते आते क्या ख़ुदा जाने बने
दम-ब-ख़ुद है तेरे आगे ए'तिबार-ए-अक़्ल-ओ-होश
होश वाले जब बढ़े हद से तो दीवाने बने
देख ले ज़ाहिद मिरी रौशन-ज़मीरी की नुमूद
एक आईने से कितने आइना-ख़ाने बने
ऐ 'फ़िगार' अफ़्साना-ए-दैर-ओ-हरम का ज़िक्र क्या
इस हक़ीक़त के न जाने कितने अफ़्साने बने
ग़ज़ल
तुम हरीम-ए-नाज़ में बैठे हो बेगाने बने
फ़िगार उन्नावी