EN اردو
तुम ग़लत समझे हमें और परेशानी है | शाही शायरी
tum ghalat samjhe hamein aur pareshani hai

ग़ज़ल

तुम ग़लत समझे हमें और परेशानी है

सज्जाद बलूच

;

तुम ग़लत समझे हमें और परेशानी है
ये तो आसानी है जो बे-सर-ओ-सामानी है

ख़्वाहिश-ए-दीद सर-ए-वस्ल जो निकली नहीं थी
लम्हा-ए-हिज्र में तजरीद की उर्यानी है

क्यूँ भला बोझ उठाऊँ मैं तिरे ख़्वाबों का
मेरे आईने में क्या कम कोई हैरानी है

एक मुद्दत से जो बैठी है मिरी पलकों पर
ख़ाना-ए-दिल में वो सूरत अभी अन-जानी है

डूब जाता है सर-ए-शाम हमारा दिल भी
ये भी सूरज की तरह रात का ज़िंदानी है

ख़ुद को हम बेच के इक ख़्वाब तो ले पाए नहीं
तेरे बाज़ार में किस चीज़ की अर्ज़ानी है

किस भरोसे पे मैं टकराऊँ हवा से 'सज्जाद'
गर बिखरता हूँ तो अतराफ़ में सब पानी है