तुम भी निगाह में हो अदू भी नज़र में है
दुनिया हमारे दीदा-ए-हसरत-नगर में है
हाँ जानते हैं जान का ख़्वाहाँ तुम्हीं को हम
मालूम है कि तेग़ तुम्हारी कमर में है
क्या रश्क है कि एक का है एक मुद्दई
तुम दिल में हो तो दर्द हमारे जिगर में है
गो ग़ैर की बग़ल में सही वो परी-जमाल
मैं तो यही कहूँगा कि मेरी नज़र में है
दोनों ने दर्द-ए-इश्क़ को तक़्सीम कर लिया
थोड़ा सा दिल में है तो ज़रा सा जिगर में है
मैं भी हूँ आज मैं कि बर आई मुराद-ए-दिल
दिल भी है आज दिल कि वो मेहमान घर में है
मम्नून हूँ ख़याल का अपने शब-ए-फ़िराक़
जो सामने नज़र के नहीं वो नज़र में है
दिलबर हो एक तुम कि हमारी नज़र में हो
दिल है हमारा दिल कि तुम्हारी नज़र में है
कहते हैं जिस को दिल मिरे पहलू में अब कहाँ
है भी तो पाएमाल किसी रहगुज़र में है
देखो तो देखते हैं तुम्हें किस निगाह से
हसरत है जिस का नाम हमारी नज़र में है
जिस पर पड़ी पसीज गया मोम हो गया
डूबी हुई निगाह हमारी असर में है
जचता नहीं निगाह में कोई हसीं भी 'हिज्र'
जब से किसी की चाँद सी सूरत नज़र में है
ग़ज़ल
तुम भी निगाह में हो अदू भी नज़र में है
हिज्र नाज़िम अली ख़ान