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तुम आए जब नहीं नाकाम लौट जाने को | शाही शायरी
tum aae jab nahin nakaam lauT jaane ko

ग़ज़ल

तुम आए जब नहीं नाकाम लौट जाने को

हरबंस लाल अनेजा 'जमाल'

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तुम आए जब नहीं नाकाम लौट जाने को
तो आओ ख़ाक करो दिल के आशियाने को

बुझा बुझा सा है क्यूँ आज उदास उदास है दिल
है कोई कोह-ए-अलम और टूट जाने को

है आरज़ू-ए-दिल-ए-सोगवार लिखता रहूँ
तमाम उम्र तिरे इश्क़ के फ़साने को

बशर की तंग-दिली इस से बढ़ के क्या होगी
क़फ़स समझता रहे अपने आशियाने को

ये शेर-ओ-फ़न ये मय-ओ-नग़्मा ये शबाब-ओ-रबाब
ये बख़्शिशें हैं ग़म-ए-ज़िंदगी भुलाने को

दहन दहन ये उदासी नज़र नज़र ये मलाल
इलाही कौन सा ग़म डस गया ज़माने को

'जमाल' और भी सुलगा गया ये आतिश-ए-ग़म
उठाया जाम जो दिल की लगी बुझाने को