तुझे रब कहे कोई वहगुरो तू कहीं ख़ुदा कहीं राम है
ये हैं एक नाम की बरकतें हमें नाम लेने से काम है
तिरी मअ'रिफ़त की शराब में वो सुरूर-ओ-कैफ़-ए-दवाम है
मय-ए-तल्ख़ में भला क्या मज़ा मय-ए-तल्ख़ पीना हराम है
है हराम क्या तो हलाल क्या ये हमारे दिल पे है मुनहसिर
जिसे चाहे दिल तो हलाल है जो न चाहे दिल तो हराम है
मिरे दिल में तेरी ही याद है तू बसा हुआ है ख़याल में
है ज़बाँ पे तेरी ही गुफ़्तुगू मिरे लब पे तेरा ही नाम है
वो किसी भी क़ौम का भाई हो करो कोशिशें कि भलाई हो
किसी बात पे न लड़ाई हो यही अंबिया का पयाम है
तिरी बारगाह-ए-नियाज़ में पए सज्दा सैंकड़ों सर झुकें
तू रहीम है तू करीम है तू ही सब का पेश-इमाम है
वो फ़क़ीर हो कि अमीर हो कि हो बादशाह मिरे ख़ुदा
हो किसी का कोई भी मर्तबा यहाँ जो है तेरा ग़ुलाम है
वो करीम है वो रहीम है वो फ़हीम है वही किब्रिया
बस उसी की शान अज़ीम है बस उसी का आली मक़ाम है
ऐ 'नहीफ़' तुझ को मैं क्या कहूँ तुझे दिल से कैसे भुला सकूँ
तिरी सीधी सादी सी गुफ़्तुगू तिरा सीधा सादा कलाम है
ग़ज़ल
तुझे रब कहे कोई वहगुरो तू कहीं ख़ुदा कहीं राम है
जूलियस नहीफ़ देहलवी