तुझे नक़्श-ए-हस्ती मिटाया तो देखा
जो पर्दा था हाइल उठाया तो देखा
ये सब तेरे ही हुस्न का परतव है
न देखा तुझे तेरा साया तो देखा
बुरा मानिए मत मिरे देखने से
तुम्हें हक़ ने ऐसा बनाया तो देखा
न हूँ क्यूँकि 'ममनून' पीर-ए-मुग़ाँ का
ये आलम जो साग़र पिलाया तो देखा

ग़ज़ल
तुझे नक़्श-ए-हस्ती मिटाया तो देखा
ममनून निज़ामुद्दीन