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तुझे ख़बर हो तो बोल ऐ मिरे सितारा-ए-शब | शाही शायरी
tujhe KHabar ho to bol ai mere sitara-e-shab

ग़ज़ल

तुझे ख़बर हो तो बोल ऐ मिरे सितारा-ए-शब

फ़रहत एहसास

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तुझे ख़बर हो तो बोल ऐ मिरे सितारा-ए-शब
मिरी समझ में तो आता नहीं इशारा-ए-शब

उसे मैं एक मुसलसल चराग़ कर देता
मिरी गिरफ़्त में होता जो इस्तिआरा-ए-शब

मैं इक चराग़ कहाँ तक मुज़ाहिमत करता
मिरे ख़िलाफ़ था कितना बड़ा इदारा-ए-शब

बहुत से चाँद बहुत से चराग़ कम निकले
बनाने बैठा जो मैं रात गोश्वारा-ए-शब

किसी भी सुब्ह का मरहम असर नहीं करता
कि हर सहर है यहाँ दूसरा किनारा-ए-शब