तुझे कहता हूँ ऐ दिल इश्क़ का इज़हार मत कीजो
ख़मोशी के मकाँ में बात और गुफ़्तार मत कीजो
मोहब्बत में दिल-ओ-जाँ होश ओ ताक़त सब अकारत है
कहो कोई अक़्ल कूँ जा कर बड़ा बिस्तार मत कीजो
एवज़ नक़्द-ए-दुआ के मुफ़्त है दुश्नाम उस लब सीं
अरे दिल इश्क़ के सौदे में फिर तकरार मत कीजो
उसे ऊँचा है ज़ालिम दाम ने तुझ मेहरबानी के
हमारे सैद-ए-दिल ऊपर सितम का वार मत कीजो
अगर ख़्वाहिश है तुझ कूँ ऐ 'सिराज' आज़ाद होने की
कमंद-ए-अक़्ल कूँ हरगिज़ गले का हार मत कीजो
ग़ज़ल
तुझे कहता हूँ ऐ दिल इश्क़ का इज़हार मत कीजो
सिराज औरंगाबादी