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तुझे कहता हूँ ऐ दिल इश्क़ का इज़हार मत कीजो | शाही शायरी
tujhe kahta hun ai dil ishq ka izhaar mat kijo

ग़ज़ल

तुझे कहता हूँ ऐ दिल इश्क़ का इज़हार मत कीजो

सिराज औरंगाबादी

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तुझे कहता हूँ ऐ दिल इश्क़ का इज़हार मत कीजो
ख़मोशी के मकाँ में बात और गुफ़्तार मत कीजो

मोहब्बत में दिल-ओ-जाँ होश ओ ताक़त सब अकारत है
कहो कोई अक़्ल कूँ जा कर बड़ा बिस्तार मत कीजो

एवज़ नक़्द-ए-दुआ के मुफ़्त है दुश्नाम उस लब सीं
अरे दिल इश्क़ के सौदे में फिर तकरार मत कीजो

उसे ऊँचा है ज़ालिम दाम ने तुझ मेहरबानी के
हमारे सैद-ए-दिल ऊपर सितम का वार मत कीजो

अगर ख़्वाहिश है तुझ कूँ ऐ 'सिराज' आज़ाद होने की
कमंद-ए-अक़्ल कूँ हरगिज़ गले का हार मत कीजो