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तुझे कब पुकारा नहीं जा रहा | शाही शायरी
tujhe kab pukara nahin ja raha

ग़ज़ल

तुझे कब पुकारा नहीं जा रहा

ख़ालिद मोईन

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तुझे कब पुकारा नहीं जा रहा
फ़िराक़ अब सहारा नहीं जा रहा

अजब बे-कली है पस-ए-इश्क़ भी
ये लम्हा गुज़ारा नहीं जा रहा

तहय्युर-ज़दा इक जहाँ है मगर
तुझी तक इशारा नहीं जा रहा

सर-ए-शौक़ मंज़िल है वो पेश-ओ-पस
थकन को उतारा नहीं जा रहा

तग़य्युर का इदराक होते हुए
नया रूप धारा नहीं जा रहा

नहीं दूर तक, जीत का शाइबा
मगर हम से हारा नहीं जा रहा