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तुझे भी इश्क़ हुआ है ये किस ज़माने में | शाही शायरी
tujhe bhi ishq hua hai ye kis zamane mein

ग़ज़ल

तुझे भी इश्क़ हुआ है ये किस ज़माने में

आरिफ़ इशतियाक़

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तुझे भी इश्क़ हुआ है ये किस ज़माने में
नहीं है माल-ए-मोहब्बत भी दिल-ख़ज़ाने में

मिलो कि बात बढ़े देखते हैं फिर शायद
ज़रा कहीं से मोहब्बत जुड़े फ़साने में

हमारा अगला पड़ाव तो बस मोहब्बत है
हवस तो आएगी जानानाँ दरमियाने में

मैं इक फ़िराक़-ज़दा और नया नया तिरा इश्क़
सो ख़ूब रंग जमेगा नए-पुराने में

जो नागवारा था मुझ को उसे गवारा था
तो साल लग गया उस को मुझे मनाने में