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तुझे भी हुस्न-ए-मुत्लक़ का अभी दीदार हो जाए | शाही शायरी
tujhe bhi husn-e-mutlaq ka abhi didar ho jae

ग़ज़ल

तुझे भी हुस्न-ए-मुत्लक़ का अभी दीदार हो जाए

अहया भोजपुरी

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तुझे भी हुस्न-ए-मुत्लक़ का अभी दीदार हो जाए
मिरे महबूब के जो रू-ब-रू इक बार हो जाए

सुकून-ओ-चैन मिल जाए ख़ुदा भी यार हो जाए
अगर इंसान में इंसानियत बेदार हो जाए

लहू में गरम-जोशी रख क़लम में ज़ोर पैदा कर
नहीं तो हर क़दम पर इक नई दीवार हो जाए

क़लंदर हूँ मुझे शोहरत की चाहत ही नहीं वर्ना
मैं रख दूँ जिस के सर पर हाथ वो सरदार हो जाए

सुना है दर्द से 'अहया' क़लम में ज़ोर मिलता है
सो मैं ने भी दुआ कर ली मुझे भी प्यार हो जाए