तुझे अच्छा बुरा जैसा लगा हूँ
वो तेरा अक्स है मैं आइना हूँ
अगर मैं एक नन्हा सा दिया हूँ
हवा की ज़द पे क्यूँ रक्खा गया हूँ
मैं इक इक साँस कट कट कर जिया हूँ
मैं जीने का सलीक़ा जानता हूँ
मैं अपने आप हूँ ख़ुद अपना क़ातिल
मैं अपने आप अपना मर्सिया हूँ
सभी दीवाने कहते हैं 'असीर' अब
कि इन में मैं ही इक सुलझा हुआ हूँ

ग़ज़ल
तुझे अच्छा बुरा जैसा लगा हूँ
राम नाथ असीर