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तुझ ज़ुल्फ़ की शिकन है मानिंद-ए-दाम गोया | शाही शायरी
tujh zulf ki shikan hai manind-e-dam goya

ग़ज़ल

तुझ ज़ुल्फ़ की शिकन है मानिंद-ए-दाम गोया

सिराज औरंगाबादी

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तुझ ज़ुल्फ़ की शिकन है मानिंद-ए-दाम गोया
या सुब्ह पर हमारी आई है शाम गोया

हैं साद उस की आँखें और क़द अलिफ़ के मानिंद
अबरू है नून-ए-नादिर गेसू है लाम गोया

मस्जिद में तुझ भवों की ऐ क़िबला-ए-दिल-ओ-जाँ
पलकें हैं मुक़तदी और पुतली इमाम गोया

रंगीं बहार-ए-जन्नत दोज़ख़ है मुझ को उस बिन
दोज़ख़ है उस के होते दारुसस्लाम गोया

टुक माह-ए-नौ की जानिब ऐ माह-रू नज़र कर
ख़म हो तिरी भवों कूँ करता सलाम गोया

गुल-रू के क़द मुक़ाबिल हो बा-अदब खड़ा है
शमशाद है चमन में उस का ग़ुलाम गोया

शेर-ए-'सिराज' अज़-बस आलम में हैं ज़बाँ-ज़द
दीवान की ज़मीं है दीवान-ए-आम गोया