EN اردو
तुझ से यूँ यक-बार तोड़ूँ किस तरह | शाही शायरी
tujhse yun yak-bar toDun kis tarah

ग़ज़ल

तुझ से यूँ यक-बार तोड़ूँ किस तरह

इंशा अल्लाह ख़ान

;

तुझ से यूँ यक-बार तोड़ूँ किस तरह
मैं क़दम तेरे ये छोड़ूँ किस तरह

घर से बाबर तू न निकला ता-हनूज़
तेरे दर पर सर न फोड़ूँ किस तरह

मय से ताइब था व-लेकिन आज पी
हाथ लग जावे तो छोड़ूँ किस तरह

आबरू-ए-अब्र याँ मंज़ूर है
आह मैं दामन निचोड़ूँ किस तरह

साफ़ दिल क्यूँ-कर करूँ तुझ से भला
टूटी उल्फ़त फिर के जोड़ूँ किस तरह

शौक़ से तू हाथ को मेरे मरोड़
मैं तिरा पंजा मरोड़ूँ किस तरह

वक़्त बोसा के ये 'इंशा' से कहा
तुझ से मैं फिर मुँह न मोड़ूँ किस तरह