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तुझ से तसव्वुरात में ऐ जान-ए-आरज़ू | शाही शायरी
tujhse tasawwuraat mein ai jaan-e-arzu

ग़ज़ल

तुझ से तसव्वुरात में ऐ जान-ए-आरज़ू

ब्रहमा नन्द जलीस

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तुझ से तसव्वुरात में ऐ जान-ए-आरज़ू
बाँधे हैं हम ने सैंकड़ों पैमान-ए-आरज़ू

ऐ रश्क-ए-नौ-बहार तिरे इंतिज़ार में
क्या क्या खिलाए हम ने गुलिस्तान-ए-आरज़ू

फिर दिल में दाग़-हा-ए-तमन्ना हैं ज़ौ-फ़िशाँ
फिर कर रहा हूँ जश्न-ए-चराग़ान-ए-आरज़ू

देखे कोई ये रब्त कि मरने के बा'द भी
छूटा न दस्त-ए-शौक़ से दामान-ए-आरज़ू

अब देखिए गुज़रती है क्या उस की जान पर
इक दिल है और सैंकड़ों तूफ़ान-ए-आरज़ू

तेरा ख़याल तेरे नज़ारे तिरा जमाल
कितने चराग़ हैं तह-दामान-ए-आरज़ू

समझो न हम को बे-सर-ओ-सामाँ कि हम 'जलीस'
रखते हैं दिल में गंज-ए-फ़रावान-ए-आरज़ू