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तुझ से क़रीब-तर तिरी तन्हाइयों में हूँ | शाही शायरी
tujhse qarib-tar teri tanhaiyon mein hun

ग़ज़ल

तुझ से क़रीब-तर तिरी तन्हाइयों में हूँ

रशीदुज़्ज़फ़र

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तुझ से क़रीब-तर तिरी तन्हाइयों में हूँ
धड़कन हूँ तेरे क़ल्ब की गहराइयों में हूँ

दुख है कि तेरी ज़ात में शामिल था मैं कभी
और आज तेरे जिस्म की परछाइयों में हूँ

ख़ुद-बीं न बन बग़ौर ज़रा आइना तो देख
मैं भी तो तेरे हुस्न की रानाइयों में हूँ

लटका हूँ मैं सलीब पे हर अहद की तरह
इस जुर्म पर कि वक़्त की सच्चाइयों में हूँ

जब से गिरा हूँ उस की निगाहों से ऐ 'ज़फ़र'
हर बज़्म में हक़ीर हूँ रुस्वाइयों में हूँ