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तुझ से मिलने की इल्तिजा कैसी | शाही शायरी
tujhse milne ki iltija kaisi

ग़ज़ल

तुझ से मिलने की इल्तिजा कैसी

नासिर शहज़ाद

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तुझ से मिलने की इल्तिजा कैसी
होंट पर आ गई दुआ कैसी

झड़ गए बाल ढीली पड़ गई खाल
दिल में अब ख़ुशबू-ए-हिना कैसी

सेज क्या है बग़ैर सय्याँ के
पानियों के बिनाँ घटा कैसी

दिल में दर आना दिल को कल़्पाना
दान कैसा है ये दया कैसी

कोई हंगामा कोई सर-नामा
वर्ना इस ज़ीस्त में बक़ा कैसी

रिश्वतें रहज़नी डकैती क़त्ल
लग गई शहर को हवा कैसी

हर्फ़-ए-हक़ ज़र्फ़-ए-काएनात बना
कर्बला हो गई कथा कैसी

शब्द शोभा सखी तिरी लोभा
तू सखी मुझ से मावरा कैसी

इंतिहा शौक़ की तरह मिलना
तुझ से मिलने की इंतिहा कैसी

जल में ठहरा तिरा मिरा चेहरा
कैसा दरिया था वो सभा कैसी