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तुझ से मिल जाने के इम्काँ हुए कैसे कैसे | शाही शायरी
tujhse mil jaane ke imkan hue kaise kaise

ग़ज़ल

तुझ से मिल जाने के इम्काँ हुए कैसे कैसे

नूर तक़ी नूर

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तुझ से मिल जाने के इम्काँ हुए कैसे कैसे
ख़्वाब ही में सही सामाँ हुए कैसे कैसे

लोग ये सोच के हो जाएँ न हालात ख़राब
आलम-ए-ऐश में हैराँ हुए कैसे कैसे

लफ़्ज़ बूढ़े हूँ तो पैग़ाम कोई क्या भेजे
हम सबा से भी पशेमाँ हुए कैसे कैसे

कोई जल्वा है न चेहरा न तजल्ली न किरन
आइने बे-सर-ओ-सामाँ हुए कैसे कैसे

दिल के अरमानों का क्या हाल कहें तुम से मियाँ
बाग़ इस मुल्क के वीराँ हुए कैसे कैसे

कैसी काफ़ूर-पसंदी है जहाँ में ऐ 'नूर'
लोग जब मर गए ज़ी-शाँ हुए कैसे कैसे