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तुझ से दामन-कशाँ नहीं हूँ मैं | शाही शायरी
tujhse daman-kashan nahin hun main

ग़ज़ल

तुझ से दामन-कशाँ नहीं हूँ मैं

सबा अकबराबादी

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तुझ से दामन-कशाँ नहीं हूँ मैं
ऐ ज़मीं आसमाँ नहीं हूँ मैं

कारवाँ मेरे बाद आएगा
गर्द हूँ कारवाँ नहीं हूँ मैं

फैल सकता हूँ छा नहीं सकता
रौशनी हूँ धुआँ नहीं हूँ मैं

नाज़ है मुझ पे मेरे साने को
ज़हमत-ए-राएगाँ नहीं हूँ मैं

जुज़्व हूँ एक जावेदाँ कुल का
हाँ अगर जावेदाँ नहीं हूँ मैं

अपनी तक़दीर पर यक़ीन नहीं
आप से बद-गुमाँ नहीं हूँ मैं

दर-ओ-बस्त-ए-चमन को क्या जानूँ
फूल हूँ बाग़बाँ नहीं हूँ मैं

ज़िंदगी पर बहार है मुझ से
ज़िंदगी की ख़िज़ाँ नहीं हूँ मैं

या निगाह-ए-तलब हूँ या जल्वा
पर्दा-ए-दरमियाँ नहीं हूँ मैं

सोचने दीजिए मआल-ए-वफ़ा
आप से सरगिराँ नहीं हूँ मैं

मौत से छेड़-छाड़ जारी है
ज़ीस्त का नौहा-ख़्वाँ नहीं हूँ मैं

आशियाँ क्या बनाऊँ गुलशन में
क़ाबिल-ए-आशियाँ नहीं हूँ मैं

ऐ ग़म-ए-सब्र-आज़मा सुन ले
क़ाबिल-ए-इम्तिहाँ नहीं हूँ मैं

यूसुफ़ों का है कारवाँ मिरे साथ
यूसुफ़-ए-कारवाँ नहीं हूँ मैं

मैं 'सबा' आह भी नहीं करता
आश्ना-ए-फ़ुग़ाँ नहीं हूँ मैं