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तुझ से अब और मोहब्बत नहीं की जा सकती | शाही शायरी
tujhse ab aur mohabbat nahin ki ja sakti

ग़ज़ल

तुझ से अब और मोहब्बत नहीं की जा सकती

नोशी गिलानी

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तुझ से अब और मोहब्बत नहीं की जा सकती
ख़ुद को इतनी भी अज़िय्यत नहीं दी जा सकती

जानते हैं कि यक़ीं टूट रहा है दिल पर
फिर भी अब तर्क ये वहशत नहीं की जा सकती

हब्स का शहर है और उस में किसी भी सूरत
साँस लेने की सहूलत नहीं दी जा सकती

रौशनी के लिए दरवाज़ा खुला रखना है
शब से अब कोई इजाज़त नहीं ली जा सकती

इश्क़ ने हिज्र का आज़ार तो दे रक्खा है
इस से बढ़ कर तो रिआयत नहीं दी जा सकती