तुझ क़बा पर गुलाब का बूटा
दिल-ए-बुलबुल गोया अभी टूटा
सच कहूँ अहद है तिरा झूटा
तू सलामत रहे ये दिल टूटा
ख़त ने ज़ुल्फ़ों का क़त्ल-ए-आम किया
फ़ौज-ए-नादिर ने हिन्द को लूटा
दिल हवा बू-ए-गुल सा सहराई
जब वो पंजे से ग़ुंचे के छूटा

ग़ज़ल
तुझ क़बा पर गुलाब का बूटा
वली उज़लत