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तुझ को लिखना है तो ऐसा कोई सफ़हा लिख दे | शाही शायरी
tujhko likhna hai to aisa koi safha likh de

ग़ज़ल

तुझ को लिखना है तो ऐसा कोई सफ़हा लिख दे

नज़ीर क़ैसर

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तुझ को लिखना है तो ऐसा कोई सफ़हा लिख दे
जागते लफ़्ज़ों में ख़्वाबों का सरापा लिख दे

पहले जो शक्ल नहीं देखी थी वो सामने ला
पहले जो नाम किताबों में नहीं था लिख दे

गुम्बद-ए-शब में मह-ओ-नज्म सजाने वाले
उन गली कूचों की क़िस्मत में दरीचा लिख दे

इन लिखे लफ़्ज़ों में लिख मुज़्दा नए मौसम का
कहीं महताब कहीं गुल कहीं चेहरा लिख दे

ज़र्द शाख़ों में नई कोंपलें लिखने वाले
पेड़ से टूटते पत्तों का भी नौहा लिख दे

यूँ भी तरतीब दे क़िस्सा कभी फ़स्ल-ए-गुल का
बाग़ में शम्अ' जला ताक़ में सब्ज़ा लिख दे

खींच दे ख़त नई सुब्हों के उफ़ुक़-ता-ब-उफ़ुक़
ख़ाक-तीरो के मुक़द्दर में उजाला लिख दे

खोल दे आँखों पे दरवाज़ा-ए-हैरत 'क़ैसर'
हर्फ़-ए-पिन्हाँ के मआ'नी सर-ए-पर्दा लिख दे