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तुझ को इस तरह कहाँ छोड़ के जाना था हमें | शाही शायरी
tujhko is tarah kahan chhoD ke jaana tha hamein

ग़ज़ल

तुझ को इस तरह कहाँ छोड़ के जाना था हमें

तारिक़ नईम

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तुझ को इस तरह कहाँ छोड़ के जाना था हमें
वो तो इक अहद था और अहद निभाना था हमें

तुम तो उस पार खड़े थे तुम्हें मालूम कहाँ
कैसे दरिया के भँवर काट के आना था हमें

उन को ले आया था मंज़िल पे ज़माना लेकिन
हम चले ही थे कि दर-पेश ज़माना था हमें

वो जो इक बार उठा लाए थे हम उजलत में
फिर वही बार हर इक बार उठाना था हमें

वो तो ऐसा है कि मोहलत न मिली थी वर्ना
अपनी बर्बादी पे ख़ुद जश्न मनाना था हमें