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तुझ बिन आराम-ए-जाँ कहाँ है मुझे | शाही शायरी
tujh bin aaram-e-jaan kahan hai mujhe

ग़ज़ल

तुझ बिन आराम-ए-जाँ कहाँ है मुझे

मीर मोहम्मदी बेदार

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तुझ बिन आराम-ए-जाँ कहाँ है मुझे
ज़िंदगानी वबाल-ए-जाँ है मुझे

गर यही दर्द-ए-हिज्र है तेरा
ज़ीस्त का अपनी कब गुमाँ है मुझे

मिस्ल-ए-तूती हज़ार मअनी में
सेहर-ए-साज़-ए-सुख़न ज़बाँ है मुझे

है ख़याल उस का माना-ए-गुफ़्तार
वर्ना सौ क़ुव्वत-ए-बयाँ है मुझे

ख़ामुशी बे-सबब नहीं 'बेदार'
बाइस-ए-ज़ीस्तन दहाँ है मुझे