तुझ बिन आराम-ए-जाँ कहाँ है मुझे
ज़िंदगानी वबाल-ए-जाँ है मुझे
गर यही दर्द-ए-हिज्र है तेरा
ज़ीस्त का अपनी कब गुमाँ है मुझे
मिस्ल-ए-तूती हज़ार मअनी में
सेहर-ए-साज़-ए-सुख़न ज़बाँ है मुझे
है ख़याल उस का माना-ए-गुफ़्तार
वर्ना सौ क़ुव्वत-ए-बयाँ है मुझे
ख़ामुशी बे-सबब नहीं 'बेदार'
बाइस-ए-ज़ीस्तन दहाँ है मुझे
ग़ज़ल
तुझ बिन आराम-ए-जाँ कहाँ है मुझे
मीर मोहम्मदी बेदार