तुझ बेवफ़ा की आह कोई चाह क्या करे
दिल तुझ को दे के तू ही बता आह क्या करे
जिस दिल-जले की तुझ से लगे शम्अ-साँ लगन
सर से वो गुज़रे और तू वल्लाह क्या करे
ज़ारी फ़ुग़ाँ ओ नाला सभी बे-असर हैं आह
इस संग-दिल के दिल में कोई राह क्या करे
इस माह-ए-कूचा-गर्द के तईं ढूँढता हुआ
हर शब गली गली न फिरे आह क्या करे
याक़ूब की तरह तो बहुत रोए देखिए
ऐ यूसुफ़-ए-ज़माना तिरी चाह क्या करे
जाते हैं सू-ए-दैर रह-ए-काबा छोड़ कर
हक़ में हमारे देखिए अल्लाह क्या करे
कोई ढूँढता कताँ के तईं यारो पर है ग़म
मिलता कहीं नहीं दिल-ए-आगाह क्या करे
की दिल ने दिल-बरान-ए-जहाँ की बहुत तलाश
कोई दिल-रुबा मिला है न दिल-ख़्वाह क्या करे
इस कू-ए-ज़ुल्फ़ में ऐ 'जहाँदार' जा फँसा
दिल किस तरह से गुम न करे राह क्या करे
ग़ज़ल
तुझ बेवफ़ा की आह कोई चाह क्या करे
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार