तोड़ने गुल को जो वो शोख़-ए-तरहदार झुका
उन के क़दमों पे सर-ए-बुलबुल-ए-गुलज़ार झुका
देख ली तेरे नशे में जो गुलाबी आँखें
आँख को शर्म से ले नर्गिस-ए-बीमार झुका
उस की पा-पोश की चमकी जो दम-ए-सुब्ह किरन
चूमने उस के क़दम मतला-ए-अनवार झुका
दौर-ए-साक़ी में मिरे झुकने लगा एक पे एक
जाम साग़र पे है साग़र पे है वो यार झुका
तुम ने 'तनवीर' लिखा ऐसा जवाब-ए-'सौदा'
जिंस-ए-मज़मूँ पे हर इक बन के ख़रीदार झुका

ग़ज़ल
तोड़ने गुल को जो वो शोख़-ए-तरहदार झुका
तनवीर देहलवी