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तोड़ कड़ियाँ ज़मीर कि 'अंजुम' | शाही शायरी
toD kaDiyan zamir ki anjum

ग़ज़ल

तोड़ कड़ियाँ ज़मीर कि 'अंजुम'

अंजुम लुधियानवी

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तोड़ कड़ियाँ ज़मीर कि 'अंजुम'
और कुच देर तो भी जी 'अंजुम'

एक भी गाम चल न पाएगी
इन अँधेरों में रौशनी 'अंजुम'

ज़िंदगी तेज़ धूप का दरिया
आदमी नाव मोम की 'अंजुम'

जिस घटा पर थी आँख सहरा कि
वो समुंदर पे मर मिटी 'अंजुम'

जिस पे सुरज कि मेहरबानी हो
उस पे खिलती है चाँदनी 'अंजुम'

सुब्ह का ख़्वाब उम्र भर देखा
और फिर नींद आ गई 'अंजुम'