तोड़ दी उस ने वो ज़ंजीर ही दिलदारी की
और तशहीर करो अपनी गिरफ़्तारी की
हम तो सहरा हुए जाते थे कि उस ने आ कर
शहर आबाद किया नहर-ए-सबा जारी की
हम भी क्या शय हैं तबीअत मिली सय्यारा-शिकार
और तक़दीर मिली आहू-ए-तातारी की
इतना सादा है मिरा माया-ए-ख़ूबी कि मुझे
कभी आदत न रही आइना-बरदारी की
मिरे गुम-गश्ता ग़ज़ालों का पता पूछता है
फ़िक्र रखता है मसीहा मिरी बीमारी की
उस के लहजे में कोई चीज़ तो शामिल थी कि आज
दिल पे इस हर्फ़-ए-इनायत ने गिराँ-बारी की
ग़ज़ल
तोड़ दी उस ने वो ज़ंजीर ही दिलदारी की
इरफ़ान सिद्दीक़ी