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तो पहले मेरा ही हाल-ए-तबाह लिख लीजे | शाही शायरी
to pahle mera hi haal-e-tabah likh lije

ग़ज़ल

तो पहले मेरा ही हाल-ए-तबाह लिख लीजे

बेकल उत्साही

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तो पहले मेरा ही हाल-ए-तबाह लिख लीजे
फिर अपने आप को आलम पनाह लिख लीजे

किताब-ए-सहरा में ज़िक्र आए जब समुंदर का
मिरी हयात किसी की निगाह लिख लीजे

दियों के क़त्ल पे सूरज की हर किरन चुप है
इस एहतियात को जश्न-ए-सियाह लिख लीजे

लबों पे अम्न के नग़्मे दिलों में जंग की आग
शिकस्त-ए-अज़्म ब-नाम-ए-सिपाह लिख लीजे

वो मेरे क़त्ल का मुल्ज़िम है लोग कहते हैं
वो छुट सके तो मुझे भी गवाह लिख लीजे

मैं अपने घर की तबाही संभाल लूँगा मगर
ज़माने भर का मुझे सरबराह लिख लीजे

ख़ताएँ इतनी हैं 'बेकल' मुझे नहीं मालूम
यही सज़ा है मिरा हर गुनाह लिख लीजे