तितलियों का रंग हो या झूमते बादल का रंग
हम ने हर इक रंग को जाना तिरे आँचल का रंग
तेरी आँखों की चमक है या सितारों की ज़िया
रात का है घुप अंधेरा या तिरे काजल का रंग
धड़कनों के ताल पर वो हाल अपने दिल का है
जैसे गोरी के थिरकते पाँव में पायल का रंग
फेंकना तुम सोच कर लफ़्ज़ों का ये कड़वा गुलाल
फैल जाता है कभी सदियों पे भी इक पल का रंग
आह ये रंगीन मौसम ख़ून की बरसात का
छा रहा है अक़्ल पर जज़्बात की हलचल का रंग
अब तो शबनम का हर इक मोती है कंकर की तरह
हाँ उसी गुलशन पे छाया था कभी मख़मल का रंग
फिर रहे हैं लोग हाथों में लिए ख़ंजर खुले
कूचे कूचे में अब आता है नज़र मक़्तल का रंग
चार जानिब जिस की रानाई के चर्चे हैं 'क़तील'
जाने कब देखेंगे हम उस आने वाली कल का रंग
ग़ज़ल
तितलियों का रंग हो या झूमते बादल का रंग
क़तील शिफ़ाई