तितली क़फ़स में क़ैद-ए-सबा ढूँढती रही
मैं शहर-ए-नंग में भी रिदा ढूँढती रही
वो तितलियों में मस्त बहुत मुतमइन सा था
जिस को चमन में मेरी सदा ढूँढती रही
रुत की तरह मिज़ाज बदल कर चला गया
वो बेवफ़ा था उस में वफ़ा ढूँढती रही
तख़्त-ए-मुनाफ़िक़त पे वही हुक्मरान था
बहर-ए-ख़ुलूस जिस को सदा ढूँढती रही
जोश-ए-जुनूँ के हाथ जिसे दान कर चुकी
फिर मैं ज़रूरतन वो अना ढूँढती रही
दिल पर लगे जो ज़ख़्म कहाँ मुंदमिल हुए
मैं शहर शहर फिरती दवा ढूँढती रही
बस्ती में एक भी न वफ़ादार मिल सका
मैं दर-ब-दर भटकती वफ़ा ढूँढती रही
सैल-ए-बला भँवर में जहाँ छोड़ कर गया
मैं नाख़ुदा के साथ ख़ुदा ढूँढती रही
दीवार-ए-दिल से मेरी चुरा के वो ले गया
जगमग सी रौशनी वो दिया ढूँढती रही
मेरी हथेलियों पे रचे ज़ख़्म ज़ख़्म रंग
'बानो' मैं इन में बू-ए-हिना ढूँढती रही

ग़ज़ल
तितली क़फ़स में क़ैद-ए-सबा ढूँढती रही
बानो बी