तिश्नगी ने सराब ही लिक्खा
ख़्वाब देखा था ख़्वाब ही लिक्खा
हम ने लिक्खा निसाब-ए-तीरा-शबी
और ब-सद आब-ओ-ताब ही लिक्खा
मुंशियान-ए-शुहूद ने ता-हाल
ज़िक्र-ए-ग़ैब-ओ-हिजाब ही लिक्खा
न रखा हम ने बेश-ओ-कम का ख़याल
शौक़ को बे-हिसाब ही लिक्खा
दोस्तो हम ने अपना हाल उसे
जब भी लिक्खा ख़राब ही लिक्खा
न लिखा उस ने कोई भी मक्तूब
फिर भी हम ने जवाब ही लिक्खा
हम ने इस शहर-ए-दीन-ओ-दौलत में
मस्ख़रों को जनाब ही लिक्खा
ग़ज़ल
तिश्नगी ने सराब ही लिक्खा
जौन एलिया