EN اردو
तिरी तलाश में निकले हैं तेरे दीवाने | शाही शायरी
teri talash mein nikle hain tere diwane

ग़ज़ल

तिरी तलाश में निकले हैं तेरे दीवाने

अज़ीज़ वारसी

;

तिरी तलाश में निकले हैं तेरे दीवाने
कहाँ सहर हो कहाँ शाम हो ख़ुदा जाने

हरम हमीं से हमीं से हैं आज बुत-ख़ाने
ये और बात है दुनिया हमें न पहचाने

हरम की राह में हाइल नहीं हैं बुत-ख़ाने
हरम से अहल-ए-हरम हो गए हैं बेगाने

ये ग़ौर तू ने किया भी कि हश्र क्या होगा
तड़प उट्ठे जो क़यामत में तेरे दीवाने

'अज़ीज़' अपना इरादा कभी बदल न सका
हरम की राह में आए हज़ार बुत-ख़ाने