तिरी तलाश में निकला तो रास्ता हुआ मैं
सो तेरे पाँव में हूँ राह देखता हुआ मैं
चटख़ रहा हूँ तो अब इस में क्या तअज्जुब है
ख़ुद अपने बोझ तले ही रहा दबा हुआ मैं
कहीं खिंचा रहा दुनिया से मिस्ल-ए-दस्त-ए-फ़क़ीर
मिसाल-ए-दस्त-ए-तमन्ना कहीं बढ़ा हुआ मैं
अजीब क़ैद थी जिस में बहुत ख़ुशी थी मुझे
अब अश्क थमते नहीं हैं ये क्या रिहा हुआ मैं
ये देख ग़ौर से पहचान अपनी कारीगरी
कि तेरे चाक से उतरा था कल बना हुआ मैं
बस एक चोट लगी थी कि बंद टूट गया
और अपना-आप बहा ले गया थमा हुआ मैं
ज़माने देखते हैं कितनी देर चलती है
बहुत डटा हुआ तू है बहुत जमा हुआ मैं
ग़ज़ल
तिरी तलाश में निकला तो रास्ता हुआ मैं
बिलाल अहमद