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तिरी शिकस्त का एलान तो नहीं करेंगे | शाही शायरी
teri shikast ka elan to nahin karenge

ग़ज़ल

तिरी शिकस्त का एलान तो नहीं करेंगे

सनाउल्लाह ज़हीर

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तिरी शिकस्त का एलान तो नहीं करेंगे
जो तेरा काम है दरबान तो नहीं करेंगे

सियाह-रात के आँगन में कूद कर हम लोग
दिए जलाएँगे नुक़सान तो नहीं करेंगे

मैं अपनी ज़ात की हैरत-सरा से गुज़रा हूँ
ये तजरबे मुझे हैरान तो नहीं करेंगे

ये ठीक है कि ज़रूरी है कार-ए-गिर्या भी
मगर ये हिज्र के दौरान तो नहीं करेंगे

ये सोचना था तुम्हें दाएरे बनाते हुए
ये पेच तुम को परेशान तो नहीं करेंगे

'ज़हीर' उस की रगों को लहू पिला कर हम
ज़मीन पर कोई एहसान तो नहीं करेंगे